उर्दू मुसलमानों की और इस्लाम की जुबान है इस भाव पर तीसरी मुहर तब लगी जब पाकिस्तान बना ! उस वक़्त के पूर्वी पाकिस्तान के लोग बंगाली बोलते थे, पश्चिमी पकिस्तान में पंजाबी, बलूच, पश्तो का चलन था और उर्दू बोलने वाले प्रायः वही लोग थे जो बिहार, उत्तरप्रदेश आदि राज्यों से हिजरत कर पकिस्तान गए थे यानि जो भाषाई लिहाज से पाकिस्तान में अल्पसंख्यक थे ! यहाँ भी जिन्ना ने उर्दू को पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा बनाने की जिद पकड़ ली और बहुसंख्यक पाकिस्तानियों की भाषाई भावनाओं की अनदेखी करते हुए महज इस्लाम के नाम पर उर्दू को उनपर थोप दिया !
पहले उर्दू को अपना मानकर हिंदी को हिन्दुओं की जुबान मानते हुए उसका विरोध, फिर द्विराष्ट्रवाद सिद्धांतों की दलीलों में उर्दू को लेकर भारत विभाजन और फिर एक इस्लामी मुल्क के राज्यभाषा के रूप में उर्दू को प्रतिष्ठित करने के कार्यों ने हिन्दुओं और उन मुसलमानों के मन में (जो उर्दू को हिन्दू-मुस्लिम मुहब्बत की सांझी जुबान मानते थे) यह बात डाल दी कि उर्दू तो मुसलमानों की जुबान है जो एक इस्लामी मुल्क के स्थापना का आधार है !
पहले उर्दू को अपना मानकर हिंदी को हिन्दुओं की जुबान मानते हुए उसका विरोध, फिर द्विराष्ट्रवाद सिद्धांतों की दलीलों में उर्दू को लेकर भारत विभाजन और फिर एक इस्लामी मुल्क के राज्यभाषा के रूप में उर्दू को प्रतिष्ठित करने के कार्यों ने हिन्दुओं और उन मुसलमानों के मन में (जो उर्दू को हिन्दू-मुस्लिम मुहब्बत की सांझी जुबान मानते थे) यह बात डाल दी कि उर्दू तो मुसलमानों की जुबान है जो एक इस्लामी मुल्क के स्थापना का आधार है !
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