पाकिस्तान की जनता और राजनीतिक वर्ग तालिबान से कितना आजिज़ आ चुके थे
इस बात का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि जब नवाज़ शरीफ़ ने नेशनल
असेंबली में इस फैसले का ऐलान किया तो सभी विपक्षी दलों ने सरकार के इस कदम
का समर्थन किया। यहां तक कि इमरान खान जो कि तालिबान से बातचीत के समर्थक
थे उन्होंने भी अपने समर्थन का ऐलान किया। एएनपी और पीपीपी ने भी अपने
समर्थन का ऐलान किया। बल्कि पूर्व राष्ट्रपति ज़रदारी ने ये भी कहा कि अगर
ऑपरेशन अधूरा छोड़ा गया तो पहले से अधिक खून खराबा होगा। एक राष्ट्रीय
सर्व के अनुसार लगभग 70 प्रतिशत जनता ने इस ऑपरेशन का समर्थन किया है।
सेना और नवाज़ शरीफ़ ने भी कसम खाई है कि आखरी आतंकवादी के खात्मे तक ये
लड़ाई जारी रहेगी।
लेकिन
दुर्भाग्यवश से पाकिस्तान की जमाते इस्लामी और जमात उलेमाए पाकिस्तान ने
सदन में सरकार के इस कदम का विरोध इस बहाने के साथ किया कि इससे सूरतेहाल
ज्यादा बिगड़ सकती है और इस आपरेशन से समस्या का समाधान नहीं निकलने वाला
है। जमाते इस्लामी पाकिस्तान के अमीर सिराजउल हक़ ने कहा कि हिंसा से
समस्या हल नहीं होगी।
http://newageislam.com/hindi-section/pakistan-army/d/87608
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