Wednesday, April 16, 2014

The Collection of Qur'anic Verses into a Book Form: Perceptions and Reality क़ुरान संकलन के बारे में प्रचलित धाराणाएं और वास्तविकताएं





गुलाम रसूल देहलवी, न्यु एज इस्लाम
9 अप्रैल, 2014
किसी भी मुसलमान के भीतर हमेशा ये बौद्धिक जिज्ञासा विकसित होनी चाहिए कि उसके धर्म के मुख्य स्रोत यानि क़ुरान का संकलन किस तरह सम्भव हुआ और कैसे मुसलमानों ने इसे अपनी स्मृति में संग्रहीत किया। अब तक मैं भी उन्हीं आम मुसलमानों की ही तरह क़ुरान पर ईमान (विश्वास) रखने वाला एक मुसलमान था जिन्हें क़ुरान की ऐतिहासिक सच्चाई की बिल्कुल भी समझ नहीं है और वो क़ुरान पर सिर्फ इस धार्मिक पवित्रता के आधार पर विश्वास रखते हैं जो इसके साथ जुड़ी हुई है। लेकिन मैं पूरे विश्वास के साथ ये कह सकता हूँ कि क़ुरान पर विश्वास रखने का ये क़ुरानी तरीका नहीं है। एक ऐसी किताब की तो बात ही छोड़ दीजिए जो सार्वभौमिक और वैश्विक धर्म के लिए आधार प्रदान करती है, दरअसल क़ुरानी दृष्टिकोण से ये तरीका एक आम खबर पर विश्वास करने का भी नहीं है। क़ुरान हमें स्पष्ट रूप से ये हुक्म देता है कि जब कोई खबर हमारे पास पहुंचती है तो अच्छी तरह से हमें उसकी जांच और परख करनी चाहिए ताकि कहीं ऐसा न हो कि हमारी नादानी की वजह से किसी को नुकसान पहुंच जाए।(49: 6)
 

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