Thursday, April 17, 2014

Holy Quran is The Document of the Right and the Wrong सही और गलत की कसौटी क़ुरान है





A letter to Editor of Monthly Sautul Haq
14 अप्रैल, 2014
फ़रहाद साहब अस्सलामो-अलैकुम
फ़रहाद साहब! कुछ साल पहले आपने एक लेख लिखा था कि ग़ारे हिरा में रवायत के मुताबिक़ जिब्रईल अमीन पहली वही किसी तख्ती पर लिख कर लाए होंगे। हुज़ूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम से कहा इक़रा हुज़ूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने जवाब दिया (मैं पढ़ने में सक्षम नहीं हूँ) जबकि उपमहाद्वीप के अनुवादक और टिप्पणीकार इस पर सहमत हैं कि जिब्रईल अलैहिस्सलाम ने ज़बानी कहा इक़रा......... क्या आज भी आप अपनी बात पर कायम हैं? और आपने ये भी लिखा था कि हुज़ूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम  अनपढ़ नहीं थे जबकि मौलाना मौदूदी साहब नबी उम्मी का अनुवाद अनपढ़ करते हैं। जवाब की प्रतीक्षा में,
पेश इमाम जामा मस्जिद मोहल्ला गड़ां वाला मंडी, भावलदीन
मोहतरम शम्सुद्दीन साहब! गलत बात कि एक आदमी कहे या उपमहाद्वीप या महाद्वीप के सभी लोग, वो गलत होगा।  और सही बात अगर एक कहे और मुक़ाबले में लाख आदमी हों ये स्वीकार करना होगा, सही और गलत की कसौटी हमारे यहाँ क़ुरान है। रही आपकी बात की मौदूदी साहब ''उम्मी' का अनुवाद अनपढ़ करते हैं, हुज़ूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम  को अनपढ़ मानते हैं तो इसका मतलब ये होगा कि हुज़ूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम पढ़े लिखे थे मगर इतने नहीं जितने मौदूदी साहब थे। हुज़ूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम व्यापारी थे। मिस्र, इराक, यमन और कहाँ कहाँ व्यापार का सामान लेकर जाया करते थे। इसी व्यापार में आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की अमानत और दयानत देखकर ख़दीजा रज़ियल्लाहू अन्हा बिंत खवालद ने आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम से शादी की थी। व्यापार की सफलता का दारोमदार पत्र व्यवहार पर होता है।
 

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