Wednesday, April 30, 2014

Islam and India इस्लाम और हिंदुस्तान





अभिजीत, न्यु एज इस्लाम
25 अप्रैल, 2014
हमारी पहचान हमारे वतन से जुड़ी होती है, इसका पता तब चलता है जब हम कहीं बाहर जातें हैं। वहां दुनिया हमें हिंदू, मुस्लिम, सिख इन नामों से नहीं पहचानती बल्कि हमारी पहचान का आधार हिंदुस्तानी होना होता है। हमारी पहचान अगर हमारे वतन से जुड़ी हुई है तो इसके प्रति श्रद्धा, भक्ति और सर्मपण भावना रखना भी हमारा कर्तव्य है। मुस्लिम जगत मुस्लिम उम्मा (Muslim Brotherhood) की अवधारणा से बंधा हुआ है। भारतीय मुसलमान भी इससे अछूते नहीं है। इस कारण पूरे मुस्लिम जगत में कोई भी समस्या आये या दुनिया में कहीं भी इस्लाम पर संकट आये तो भारतीय मुसलमान सड़कों पर निकल आतें हैं। मोहम्मद साहब (सल्ल0) का जन्म स्थान और उनसे जुड़े होने तथा खुदा का घर होने के कारण मक्का और मदीना मुसलमानों के लिये पवित्रतम स्थान हैं और सारा मुस्लिम विश्व मुसलमानों के लिये अपना है, ये सारी बातें भी ठीक है मगर इन सबके बाबजूद किसी मुसलमान के मन में अपने मुल्क के प्रति श्रद्धाभाव में कमी नहीं आनी चाहिये ये भी इस्लाम की ही तालीम है।
इस देश में मुसलमानों को वोट बैंक समझने की राजनीतिक मानसिकता और चंद नासमझ मुस्लिम आलिमों के बहकावे में आने और उसका अनुगमन करने के कारण भारतीय मुसलमानों की राष्ट्रीय निष्ठा संदिग्ध समझी जाती है। इनके बहकाबे में आकर मुसलमानों को ये लगता है कि अगर वो इस मुल्क के प्रति वफादारी रखेंगें तो इस्लाम के प्रति उनकी वफादारी कम हो जायेगी और यही गलत सोच उन्हें इस मुल्क के साथ एकरस नहीं होने देती। राष्ट्र और मजहब के संबधों के बारे में इस संभ्रम के कारण ही वंदे मातरम् जैसे विवाद सामने आते रहतें हैं। जबकि हकीकत तो ये है कि अगर कोई सही तरीके से इस्लाम की शिक्षाओं पर अमल करे तो हिंदुस्तान के प्रति स्वाभाविक मोहब्बत उसके मन में जगेगी और इस मुल्क के प्रति वफादारी और इसकी खिदमत करना उसे अपना मजहबी कर्तव्य लगने लगेगा। पैगंबर (सल्ल0)  को अपने वतन से बेहद मुहब्बत थी। जब वो मक्का से हिजरत करके मदीना जा रहे थे तो बार-2 मुड़कर अपने वतन की तरफ देखते थे। उनकी वतनपरस्ती ही थी जिससे उनके मुबारक जुबान से ये शब्द निकल पड़े थे - 'हुब्बुल वतन मिनल ईमान ' यानि ‘वतनपरस्ती ईमान का हिस्सा है।‘  वतन के प्रति मोह


 

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