Tuesday, April 15, 2014

Daughters in Islam इस्लाम में बेटियों का स्थान

इस्लाम वेब
20 मार्च, 2014
अल्लाह का फरमान (जिसका मतलब) है, "अल्लाह ही की है आकाशों और धरती की बादशाही। वो जो चाहता है पैदा करता है, जिसे चाहता है लड़कियाँ देता है और जिसे चाहता है लड़के देता है। या उन्हें लड़के और लड़कियाँ मिला-जुलाकर देता है और जिसे चाहता है निस्संतान रखता है। निश्चय ही वो सर्वज्ञ, सामर्थ्यवान है।" (42: 49- 50) अल्लाह एक है और अपने परम ज्ञान के आधार पर जिसे चाहता है बेटा और बेटियाँ देता है, वो केवल उन्हें बेटा देता है जिसे वो चाहता है और वो केवल उन्हें ही बेटियां देता है जिसे वो चाहता है और वो जिसे चाहता है बांझ रखता है।
उपरोक्त आयत में हमने नोटिस किया कि इन आयतों में बेटियों का ज़िक्र बेटों से पहले आया है और धार्मिक विद्वानों ने इस पर ये टिप्पणी की है: "ये बेटियों को प्रोत्साहित करने के लिए है और उनके प्रति अच्छे व्यवहार को बढ़ावा देने के लिए है क्योंकि कई अभिभावक बेटी के जन्म को बोझ महसूस करते हैं। इस्लाम से पहले के दौर में लोगों का ये आम दृष्टिकोण था कि वो बेटी के जन्म से इतनी नफरत करते थे कि उन्हें ज़िंदा दफन कर देते थे इसलिए इस आयत में अल्लाह लोगों से ये कह रहा है किः "तुम्हारी नज़र में कमतर इस बच्ची का मर्तबा अल्लाह की बारगाह में बहुत बुलंद है। अल्लाह ने आयत में बेटियों का ज़िक्र सबसे पहले उनकी कमज़ोरी की तरफ इशारा करने के लिए है और ये बताने के लिए कि वो तुम्हारी देखभाल और ध्यान की अधिक हकदार हैं।"

 

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