Maulana Abul Kalam Azad: The
Man Who Knew The Future Of Pakistan Before Its Creation मौलाना अबुल कलाम
आज़ाद और पाकिस्तान (पहली क़िस्त)
सोरिश कश्मीरी
22 दिसम्बर, 2013
जनाब सोरिश कश्मीरी को 1946 में दिए गए इंटरव्यू का पहला हिस्सा
सवाल-
हिन्दू और मुस्लिमों के बीच मतभेद इस हद तक फैल चुके हैं कि विरोधियों में
समझौते के दूसरे सभी रास्ते बंद हो गये हैं और पाकिस्तान अपरिहार्य हो गया
है?
जवाब-
हिंदू और मुस्लिमों के बीच मतभेद का समाधान अगर पाकिस्तान होता तो मैं खुद
उसका समर्थन करता। हिन्दुओं का मन भी इसी तरफ पलट रहा है। एक तरफ आधा
पंजाब, सीमावर्ती इलाके, सिंध और बलूचिस्तान और दुसरी तरफ आधा बंगाल दे कर
उन्हें सारा हिन्दुस्तान मिल जाए तो बड़ी सल्तनत, हर समुदाय के राजनीतिक
अधिकार की समस्या से सुरक्षित हो जाती है। इस तरह हिन्दुस्तान एशिया में
चीन के बाद लीगी शब्दावली के अनुसार एक बड़ा हिंदू देश होगा। ये किसी हद तक
व्यवहारिक भी और काफी हद तक स्वभाविक भी। ये कोई इच्छित चीज़ नहीं होगी
बल्कि ये समाज का असर होगा। आप एक समाज को जिसकी आबादी 90 प्रतिशद हिन्दू
हो किसी और सांचे में कैसे ढाल सकते हैं जबकि पूर्वऐतिहासिक काल से वो उसी
सांचे में ढलें हो और उसकी सबसे बुरी दुश्मनी (सम्बंधी, रिश्तेदार) हो। वो
चीज़ जिसने समाज में इस्लाम की शुरुआत की और उसकी आबादियों में से अपना एक
ताक़तवर अल्पसंख्यक पैदा किया। बंटवारे की इस राजनीति की ज़बरदस्त नफ़रत ने
इस्लाम के प्रचार प्रसार के दरवाज़े इस तरह बंद कर दिए है कि उनके खुलने
का सवाल ही नहीं रहा। जैसे इस राजनीति ने मज़हब की दावत खत्म कर दी है।
मुसलमान क़ुरान की तरफ लौट रहे हैं, अगर वो कुरान की तरफ लौट रहे हैं, अगर
वो कुरान और सीरत के मुसलमान होते और इस्लाम की आड़ में स्वयंभू राजनीतिक
दुश्मनी का इस्तेमाल न करते तो इस्लाम हिंदुस्तान में रुकता नहीं, बढ़ता और
फैलता। औरंगज़ेब के वक्त में हम मुसलमान हिन्दुस्तान में शायत सवा दो
करोड़ थे, कुछ ज़्यादा या
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