Tuesday, February 4, 2014

Islamic Economy During Khilafat-e-Rasheda Part 1: The Age of Abu Bakr Siddique (r.a.) ख़िलाफ़ते राशिदा के समय में इस्लामी अर्थव्यवस्था (भाग 1): अबु बकर सिद्दीक़ का दौर

ख़िलाफ़ते राशिदा
की
आर्थिक समीक्षा
द्वारा
खुर्शीद अहमद फ़ारिक़
प्रोफेसर अरबी, दिल्ली विश्वविद्यालय
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
मुक़दमा
बीस साल तक मुझे एक ऐसी किताब की तलाश रही जिसने इस्लाम के बुनियादी आर्थिक सिद्धांत और इस्लामी समाज की आर्थिक व्यवस्था की समीक्षा की हो लेकिन अफसोस है कि अरबी, अंग्रेज़ी, उर्दू और फारसी भाषा में इस तरह की कोई किताब मुझे उपलब्ध नहीं हुई। इस कमी को देखकर मेरे दिल में खुद ऐसी किताब लिखने का रुझान पैदा हुआ और ये किताब उसी रुझान का नतीजा है। इसकी तैयारी में हाथ आने वाले उन सारे पुराने अरबी स्रोतों से मदद ली गई है जिनमें नब्वी दौर और ख़िलाफ़ते राशिदा के आर्थिक मामलों से सम्बंधित सूचना या संकेत मिलते हैं। मैंने इन सबका तुलनात्मक अध्ययन कर और शोध की कसौटी पर कस कर क्रम के साथ पेश किया है।
ये समीक्षा कई साल हुए मासिक बुरहान दिल्ली में छपा था। इसे पढ़कर कुछ लोगों ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम और सहाबा रज़ियल्लाहू अन्हा के नामों के साथ कई जगह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम और रज़ियल्लाहू अन्हा के शब्द न देखकर मेरी साहित्यिक समझ की शिकायत की थी। सच ये है कि मेरे दिल में बिल्कुल भी बेअदबी नहीं थी और न है। मैंने कागज़, किताबत और मुद्रण के बढ़ते खर्च में बचत की खातिर रसूलुल्लाह के साथ सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम और सहाबा के साथ रज़ियल्लाहू अन्हा लिखने पर संतोष किया था। ये दोनों अलामतें लिखने से कातिब का क़लम अक्सर जगहों पर चूक गया। कुछ तो इस ख़याल से कि सम्मान व्यक्त करने के लिए मैंने दोनों के लिए ही एक वचन की जगह बहुवचन का इस्तेमाल किया और कुछ अरबी किताबों की नज़ीर सामने रखकर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम और सहाबा रज़ियल्लाहू अन्हा के नामों के साथ दोनों अलामतें लिखने का न तो पालन किया जाता है, न उन्हें किसी दूसरे सम्मान वाले उपनाम से याद किया जाता है। वर्तमान समीक्षा में दोनों अलामतें लिखने की  कातिब को बार बार ताकीद की जाती रही है। उम्मीद है कि पाठकों को अब पिछली शिकायते पैदा नहीं होंगी।
खुर्शीद अहमद फ़ारिक़
10 अक्टूबर, 1974

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