Tug of War of Fanaticism कट्टरता की रस्साकशी
अख़लाक़ अहमद उस्मानी
जनसत्ता 25 मार्च, 2014 : ‘सिवा अल्लाह के मैं किसी से नहीं डरती, करो जो तुम जुल्म कर सकते हो।
आग
के शोले तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। तुम अपनी ज्यादतियों के लिए अल्लाह
के जिम्मे हो।’ खलीफा हजरत अली की बेटी और हजरत इमाम हुसैन और हजरत इमाम
हसन की बहन हजरत सैयदा जैनब ने ये वाक्य करबला की जंग के बाद बंदी बनाए
जाने पर जालिम यजीद को भरे दरबार में कहे थे। इस उद्बोधन के अगले सत्तर
सालों में यजीद की तानाशाही का पतन हो गया और इस्लाम में ‘अहले-बैत’
(पैगंबर हजरत मुहम्मद के घर वाले) से बैर रखने वालों का निशान मिट गया। उसी
सैयदा जैनब की मजार पर जुलाई 2013 में हुए हमले के बाद ही वहाबी आतंकवादी
आपस में उलझने लगे हैं।
वहाबी
सोच मात्र दो-ढाई सौ साल पहले जन्मा है। क्या सैयदा जैनब के साथ इस्लामी
इतिहास फिर करवट ले रहा है? सीरिया में बशर अलअसद की सरकार गिराने के बाद
सपनों में बनने वाली सरकार के लिए कतर यूरोप तक वाया सीरिया गैस पाइपलाइन
चाहता था और सऊदी अरब को कोई शिया हुकूमत नहीं चाहिए। सूत और कपास के
साथ-साथ जुलाहे भी उलझ गए। जब सीरिया में कतर की महत्त्वाकांक्षा सऊदी अरब
से बड़ी हो गई, तो कतर की मदद से दुनिया भर में चलने वाले मुसलिम ब्रदरहुड
की सरकार गिरवाने में मिस्री सेना को सऊदी अरब ने मदद की। सऊदी अरब और कतर
के बीच झगड़ा उसी जमीन से शुरू हुआ जहां-जहां ‘अहले बैत’ का खून बिखरा पड़ा
है।
सऊदी
अरब और कतर की रंजिश खुल कर सामने आ चुकी है। दोनों देशों के बीच संबंध
लगभग समाप्त हो चुके हैं। रही-सही कसर सऊदी अरब के मुसलिम ब्रदरहुड को
आतंकवादी संगठन बताते हुए प्रतिबंध लगाने से पूरी हो चुकी है। इस्लामी जगत
के इन खलनायकों के बीच रंजिश से दुनिया भर के मुसलमानों के मन में भारी
कौतूहल है। कौतूहल इस बात का कि सऊदी-कतर एकता टूटने के बाद क्या वे सुकून
से जी पाएंगे, या दो वहाबी ताकतें अपनी शक्ति दिखाने के लिए चक्की के नीचे
दूसरा पाट तो नहीं लगा देंगी? सऊदी अरब और कतर दुनिया में फैले अपने संसाधन
संभालने में लगे हैं। खेमे बंट रहे हैं। भारत भी इस बंटवारे में शामिल है।
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