Terrorism And Murder: From The Islamic Perspective आतंकवाद और क़त्ल: इस्लाम के नज़रिए से
अभिजीत
24 मार्च, 2014
हज़रत
मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के भेजे जाने का एक मकसद तो बेशक उस दीन
को दोबारा स्थापित करना था जो दीन हज़रत आदम अलैहिस्सलाम, हज़रत नूह
अलैहिस्सलाम, हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम, हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम,
हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम, हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम वगैरह नबियों का था पर उनके
भेजे जाने का एक और मकसद था। ये मकसद था लोगों के दिलों में फिर से दया और
रहमत की भावना पैदा करना जो दीन के लुप्त होने के साथ-साथ दिलों से भी
लुप्त हो चुकी थी। ये हाल दुनिया के तकरीबन तमाम मुल्कों में था। नबी
सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की विलादत के वक्त के अरबों के दिल पत्थर हो चुके
थे। वो महिलाओं के साथ पशुवत् व्यवहार करते थे, बच्चियों को जिंदा दफन कर
देते थे, बात-बात पर उनके बीच खून-खराबा हो जाता था। इंसानी जान की कोई
कीमत न थी। जानवरों की तरह इंसानों का क्रय विक्रय होता था और गुलामी प्रथा
आम थी।
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