Monday, March 24, 2014

The International Community Must Actively Address the Menace of Jihadism अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को सक्रिय रूप से जिहादवाद के खतरे और इस्लाम की इनकी काल्पनिक व्याख्या पर ध्यान देना चाहिए- सुल्तान शाहीन


सुल्तान शाहीन, एडिटर, न्यु एज इस्लाम
18 मार्च, 2014
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद
पच्चीसवाँ नियमित सत्र (3 - 28 मार्च, 2014)
एजेंडा आइटम 4: संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के लिए विशेष चिंता का विषय
सुल्तान शाहीन, एडिटर, न्यु एज इस्लाम द्वारा दिये गये मौखिक बयान का पूरा हिस्सा
अध्यक्ष महोदय,
अफगानिस्तान से नाटो सेना की वापसी और सीरिया के जिहाद से इस्लामी कट्टरपंथियों की उत्तरी अमेरिका, यूरोप और दुनिया के बाकी हिस्सों में वापसी के बाद पैदा होने वाले हालात को लेकर दक्षिण और मध्य एशियाई देश बहुत चिंतित हैं। अफगानिस्तान और पाकिस्तान में तालिबानी जिहादवाद की लहर का मतलब भारत और बांग्लादेश में अधिक आतंक हो सकता है।
अध्यक्ष महोदय! जैसा कि अनुभव बताते हैं कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई केवल सैन्य साधनों से नहीं लड़ी जा सकती। इस युद्ध का सैन्य जितना ही वैचारिक आयाम है। इस्लाम की अलगाववादी, राजनीतिक, अधिनायकवादी और जिहादी विवरणों का मुक़ाबला किया जाना चाहिए और समावेशी व मोक्ष के लिए आध्यात्मिक मार्ग के रूप में मुख्य धारा के इस्लाम के विवरणों को भरपूर बढ़ावा दिया जाना चाहिए। पश्चिमी सरकारों के बीच सिर्फ ब्रिटेन ने इस युद्ध की वैचारिक प्रकृति के सम्बंध में जागरूकता का परिचय दिया है और मुसलमानों को वैचारिक रूप से इसका मुक़ाबला करने में मदद करने का संकल्प दिखाया है। लेकिन इस सम्बंध में ब्रिटिश मुसलमानों की प्रतिक्रिया निराशाजनक रही है।
दुनिया भर के मुसलमान इन तथ्यों से इंकार करना जारी रखे हुए हैं। इनमें आत्मावलोकन का थोड़ा सा भी संकेत नज़र नहीं आता।
ब्रिटिश मुसलमानों को प्रधानमंत्री की टास्क फोर्स आन टैक्लिंग रेडिकलाइज़ेशन एण्ड इक्सट्रीमिज़्म (Task Force on Tackling Radicalisation and Extremism) की रिपोर्ट संदिग्ध लगती है। इसके बाद उठाये कदम भी उनके अंदर घबराहट का कारण बनें हैं। लेकिन इस बात के कोई संकेत नहीं हैं कि मुसलमानों की खुद इस बुराई से लड़ने की कोई योजना है। हम मुसलमानों को ये समझना और स्वीकार करना चाहिए कि ये मुख्य रूप से इस्लाम के अंदर ही एक जंग है और हमें ही इस लड़ाई को लड़ना होगा। 
 

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