Is Elimination of Terrorism Possible? (Concluding Part) क्या आतंकवाद का खात्मा सम्भव है? अंतिम भाग
मुजाहिद हुसैन, न्यु एज इस्लाम
22 मार्च, 2014
सबसे
ज़्यादा चिंता की बात ये है कि राज्य धर्म और पंथ के नाम पर हिंसा की ओर
प्रवृत्त लोगों से भरने लगा है जो राज्य के क़ानून व व्यवस्था और सामाजिक
रहन सहन से नाराज़ हैं और उन्हें अपनी अपनी हिंसक मान्यताओं के अनुसार
ढालने की चिंता में लगे हैं। धर्म और पंथ के नाम पर अस्तित्व में आने वाले
संगठन ताकत हासिल करने में व्यस्त हैं और अपने अपने कार्यकर्ताओं को जीवन
जीने के नए ढंग सिखाने में जुटे हुए हैं। जो पारंपरिक सामाजिक संदर्भ में
खासे अलग और कई बार तो विरोधाभासी दृष्टिकोणों वाले हैं। मिसाल के तौर पर
संगठनात्मक रूप से जुड़े लोगों के कपड़ों से लेकर बातचीत में इस्तेमाल होने
वाले शब्दों और सम्बोधनों तक में एक बहुत स्पष्ट अंतर देखा जा सकता है।
No comments:
Post a Comment