Wednesday, May 21, 2014

मुसलमानों का सबसे बड़ा दुर्भाग्य ये है कि उन्हें इस मुल्क हिन्दुस्तान में सिर्फ वोट बैंक समझा जाता रहा है। आजादी के बाद से एक सुनियोजित प्रयास चलाया गया ताकि मुसलमान इस देश की मुख्यधारा से कट जायें, आधुनिक और रोजगारपरक तालीम हासिल न कर सके, अपने चार विवाह के हक जैसे अधिकारों को बचाने में ही लगें रहें और हमेशा संघ परिवार के खौफ के साये में रहे ताकि इन्हें कभी ये सोचने का मौका ही न मिले कि मेरा सच्चा हितचिंतक कौन है और कौन सिर्फ मेरा इस्तेमाल करने वाला और मेरे वोटों का खरीदार हैं। इस तरह की साजिशों ने आज मुसलमानों को ऐसी बंद गली में लाकर फंसा दिया है कि उन्हें इससे बाहर निकलने का कोई रास्ता ही नजर नहीं आ रहा। इन सबके बाबजूद एक मशाल थी जो मुस्लिम समाज को इस बंद गली से बाहर निकालने का रास्ता दिखा सकती थी। ये मशाल थी मुस्लिम समाज के बीच का अटूट भाईचारा, जो मुस्लिम समाज के किसी भी समस्या पर मिल-बैठकर समाधान तलाशता था। मगर मुस्लिम वोटों के लालचियों ने ऐसी योजनायें बनाई कि उनकी इस मशाल को भी उनसे छीन लिया। मुसलमानों को मजहबी आरक्षण का लालच दिखाया गया और आरक्षण की ललक ने न सिर्फ इस्लाम की बुनियादों पर चोट की बल्कि मुस्लिम समाज को भी विभाजित कर दिया। इस आरक्षण के बहकाबे में मुस्लिम समाज ऐसा भ्रमित हुआ कि जो चीज उसके लिये सबसे बड़ी समस्या बनने वाली थी वही उसे सबसे बड़ा समाधान दिखने लगा। मुसलमान ये भूल गये कि मुसलमानों के लिये अलग मुल्क बनाकर मुस्लिम एकता को कुंद करने वाला हथियार ये मजहबी आरक्षण ही था। वोट बैंक के सौदागरों ने पहले मुसलमानों में एक वर्ग बिशेष को आरक्षण का झांसा दिया फिर पूरे मुस्लिम समाज को ही आरक्षण का अफीम देने की कोशिश शुरु कर दी।
हाल में राजेंद्र सच्चर और रंगनाथ मिश्रा के द्वारा मुसमलानों की बदहाली पर रिर्पोट पेश किये जाने के बाद से ये मुद्दा और गरमा गया है। इन रिर्पोटों में मुस्लिमों को अत्यंत पिछड़ा बताकर उनका अपमान तो किया ही गया है साथ ही साथ इसमें ऐसी बातें भी हैं जो मुसलमानों को नीचा दिखाने वाली तो है ही साथ ही इस्लाम के लिये भी अपमानजनक है।
क्या मुसलमानों के साथ भेदभाव होता है ?
 

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