Islam and Nartionalism इस्लाम और वतनपरस्ती
अभिजीत, न्यु एज इस्लाम
26 मई, 2014
वतन
से मोहब्बत का जज्बा केवल इंसानों में ही नहीं वरन् ईश्वर की बनाई तमाम
मख्लूकों में पाई जाती है। अपने वतन से मोहब्बत की भावना स्वाभाविक है
क्योंकि इंसान जहां जन्म लेता है, जहां चलना और बोलना सीखता है, जहां की
मिट्टी से उपजे अन्न-जल को खाकर बड़ा होता है, जहां उसके सगे-संबंधी,
नाते-रिश्तेदार, मित्र होतें हैं ,जहां की मिट्टी और आबो-हवा में उसके
पूर्वजों की यादें बसी होती है, उस भूमि से उसे भावात्मक लगाव हो जाता है।
वतन से उसकी मोहब्बत के दायरे में इंसान तो इंसान उस मुल्क के नदी-नाले,
पहाड़, पर्वत, बाग-बगीचे, रेगिस्तान सब जुड़ जातें है। उसके वतन की ओर कोई
आँख उठाये तो उन आँखों को नोंच लेने को उसका दिल करता है। ये मोहब्बत यहाँ
तक पहुँच जाती है कि वतन के लिये कुर्बान होने वाले को सर-आँखों पर बिठा
लिया जाता है। हर इंसान अपनी आने वाली पीढ़ी को देशभक्तों के किस्से सुनाकर
उनसे प्रेरणा लेने की सीख देता है। देश के साथ दगा करने वाले गद्दारों को
केवल नफरत और बद्दुआ से ही याद किया जाता है। इंसान अपनी रोजी-रोटी और
रोजगार की फिक्र में कहीं भी चला जाये पर अपने वतन को नहीं भूलता। दिल्ली
में रहनेवाले किसी हिंदुस्तानी को लंदन जाने पर चेन्नई का रहने वाला भी
अपना बेहद करीबी लगता है क्योंकि वो उसका हमवतन है। वतन से मोहब्बत का ये
पाक जज्बा इंसान तो इंसान परिंदों तक में पाया जाता है। कोई परिंदा बेशक
किसी खास मौसम में आश्रय की तलाश में कहीं और चला जाता है पर कुछ वक्त बाद
वो भी अपने वतन लौट जाता है।
वतन
से हमारा ताअल्लुक का सबसे बड़ा सबूत है कि हमारी पहचान इससे जुड़ी हुई
है, जिसका पता तब चलता है जब हम कहीं बाहर जातें हैं। वहां दुनिया हमें
हिंदू, मुस्लिम, सिख इन नामों से नहीं पहचानती बल्कि हमारी पहचान का आधार
वहां हिंदुस्तानी होना होता है। यहां तक कि हज और उमरा करने जाने वाले
भारतीय मुसलमानों को वहां के अरब 'हिंदी' कहकर पुकारतें हैं। वतन की
खुशहाली और तरक्की होती है तो वहां के निवासियों का जीवन स्तर भी बेहतर
होता है, वतन के हालात खराब हो तो वहां के नागरिकों को मुश्किल परिथितियों
का सामना करना पड़ता है। वतन पर संकट आये तो नागरिकों की जिदंगी, आबरु और
सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है। इसलिये इमाम अली ने वतनपरस्ती के जज्बे को
मुल्क की कामयाबी का राज बताया था। (बहार-उल-अनवार) (Imam Ali (AS) said,
'Countries thrived as a result of patriotism.' [Bihar al-Anwar, v. 78,
p-45, no. 50] )
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