Thursday, September 19, 2013

Sharia or Law Part - 2 शरीयत या कानून भाग- 2

नास्तिक दुर्रानी, न्यु एज इस्लाम
16 सितंबर, 2013
कट्टरपंथियों का फरमान है कि शरीयत लागू करने के लिए कोशिशें एक ऐसे आसमानी कानून के लिए है जिसकी तुलना उन कानूनों से किया ही नहीं जा सकता जो संविधान बनाने वाली असेम्बलियों में बनाए जाते हैं क्योंकि आसमानी कानून को तैयार करने वाला प्राणियों का रचियता है इसलिए वो प्राणियों से बेहतर उनकी मसलहेत जानता है। इसलिए शरीयत को लागू करना समाज की समस्याओं के समाधान का एकमात्र रास्ता है। चाहे ये समस्याएं आर्थिक हों, बौद्धिक या सामाजिक, इससे लोगों में न्याय स्थापित किया जा सकेगा, जिससे शांति स्थापित होगी और समाज विकास करेगा और हम खुदा की मदद से सभी कौमों को पीछे छोड़ जायेंगें। इसे साबित करने के लिए वो दौरे नबूवत (नबी के समय) और चारों खलीफा की मिसाल देते हैं जब नंग धड़ंग जाहिल बद्दू लोग प्राचीन दुनिया के सरदार बन गए और इस्लामी खिलाफत की स्थापना हुई।
बात अगर यही है तो खिलाफत की ये सल्तनत स्थिर होकर अन्याय व पिछड़ेपन का इतिहास बनकर क्यों रह गई? और अगर उनकी बात सही है तो इस दौर में हमें शरीयत को लागू करने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि शरीयत की सज़ाएं सारी की सारी शारीरिक हैं जैसे गर्दन मारना, हाथ काटना, कोड़े मारना, पत्थरों से मार कर मौत देना आदि और कैद की तो कल्पना ही नहीं है। जबकि हारे हुए लोगों की औरतों की इज़्ज़त उतारना भी पाया जाता है। तो संयुक्त राष्ट्र की दुनिया और जिनेवा समझौते इस बर्बरता को करने देंगे? और अगर किसी इस्लामी देश में शरीयत लागू कर भी दी जाए तो दूसरे इस्लामी देशों में इसको लागू करना अनिवार्य होगा या नहीं, ये मानते हुए कि इस्लाम यही चाहता है? अगर दूसरे इस्लामी देश इंकार कर दें तो क्या रुख अपना या जाना चाहिए?



No comments:

Post a Comment