Peace is the Rule in Islam, War an Exception शांति इस्लाम का क़ानून है और युद्ध केवल एक अपवाद स्थिति
मौलाना वहीदुद्दीन खान
(अग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद: वर्षा शर्मा)
09 अक्टूबर 2013
क़ुरान (22:39) हमें बताता है:
उन लोगों को जिहाद की अनुमति दी गई है जिनके विरुद्ध युद्ध किया जा रहा है, क्योंकि उन पर ज़ुल्म किया गया - और निश्चय ही अल्लाह उनकी सहायता का पूरा सामर्थ्य रखता है। क़ुरान की यह आयत हमें एक महत्वपूर्ण इस्लामी सिद्धांत की शिक्षा देती है कि उचित अर्थात (न्यायसंगत) युद्ध वही है जो रक्षा के लिए लड़ा जाये। उसके अतिरिक्त युद्ध के अन्य सभी रूप ज़ुल्म व ज़्यादती है और ज़ालिमों के लिए खुदा की बारगाह में कोई जगह नहीं है। जैसा कि क़ुरान की आयत इस बात की ओर इशारा करती है कि बचाव के अतिरिक्त किसी भी प्रकार का युद्ध किसी भी परिस्तिथि में जायज़ नही।
क़ुरान के अनुसार रक्षात्मक युद्ध भी युद्ध की स्पष्ट घोषणा के बाद ही लड़ा जाना चाहिए। घोषणा के बग़ैर युद्ध करने की अनुमति नहीं। इसके अतिरिक्त यह युद्ध केवल स्थापित सरकार द्वारा ही लड़ा जाना चाहिए। गैर सरकारी तत्वों को किसी भी बहाने से युद्ध छेड़ने की अनुमति नहीं है। इन सभी शिक्षाओ को ध्यान में रखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि क़ुरान द्वारा स्थापित युद्ध के नियमों के अनुसार रक्षात्मक युद्ध के अतिरिक्त अन्य सभी प्रकार के युद्ध ग़ैरक़ानूनी हैं।
वास्तव में युद्ध एक घिनौनी चीज़ है। प्रकृति के शाश्वत नियम के अनुसार शांति एक सामान्य नियम है और युद्ध एक आपत्ति। युद्ध का सहारा केवल मजबूरी की हालत में स्वयं की रक्षा के लिए किया जा सकता हैं। वो भी तब जब युद्ध से बचने के सभी संभावित शांतिपूर्ण प्रयास हो चुके हों और उनमें असफलता हाथ लगी हो।
धैर्य की राह में खुदा का समर्थन है
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