History of Namza in Islam (Part 8): Namaz of Two Reka'ats इस्लाम में नमाज़ का इतिहास- दो रिकअत की नमाज़ (8)
नास्तिक दुर्रानी, न्यु एज इस्लाम
18 दिसम्बर, 2013
हज़रत मक़ातिल बिन सुलेमान से रवायत है किः "अल्लाह ने इस्लाम के शुरू में दो रिकअत नमाज़ सुबह और दो रिकअत नमाज़ शाम की फ़र्ज़ की थी" 1। ये भी आया है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम दिन के शुरू में काबा जाते और ज़ोहा की नमाज़ पढ़ते, इस नमाज़ का कुरैश इंकार नहीं करते थे। उनके सहाबा अगर अस्र का वक्त आता तो आसपास में अकेले या दो दो के फैल जाते और शाम की नमाज़ पढ़ते, वो ज़ोहा और अस्र की नमाज़ पढ़ते थे जो शाम की नमाज़ है, फिर पांच नमाज़ें नाज़िल हुईं 2। इसलिए मुसलमानों की शुरुआती नमाज़ दो तरह की नमाज़ें हैं: दिन के शुरु की नमाज़ जिसे वो "सलातुल ज़ोहा" कहते थे, और अस्र की नमाज़ जिसे वो "सलातुल ऐशा" और अस्र की नमाज़ कहते थे 3। उलमा के बहुमत की यही राय है।
No comments:
Post a Comment