ईरान के साथ मिलकर कोई गठबंधन बनाने में सबसे बड़ी रुकावट ये है कि हिंदुस्तान कम से कमदो मैदानों में ईरान की आशाओं पर पूरा नहीं उतरा है, बल्कि इंटरनेशनल एटामिक एनर्जी कमेटीके मामले में तो ईरान को हिंदुस्तान से निराशा भी हुई है। हिंदुस्तान ने दो बार अमेरिका को खुशकरने के लिए ईरान के खिलाफ वोट दिया। इसके बाद हिंदुस्तान ने बात बराबर करने की कोशिशभी की, लेकिन बात नहीं बनी। इसके अलावा ईरान से गैसपाइप लाइन लाने के समझौते से भीईरान को निराशा हुई थी। उसका खयाल है कि गैस की कीमत पर सहमत न होना समझौते से पीछेहटने का बहाना है। असल बात ये है कि अमेरिका नहीं चाहता है कि हिंदुस्तान और ईरान के बीच कोई व्यापारिकसमझौता हो। इसलिए उसकी भी सम्भावना बहुत कम है कि ईरान इस सवाल पर हमारे साथ बहुत दूर तक जा सके। येऔर बात है कि तालिबान का शासन ईरान को भी रास न आयेगा, लेकिन हिंदुस्तान के मुक़ाबले में ईरान के पासअफगानिस्तान में काफी दोस्त हैं। --हसन कमाल (उर्दू से हिंदी अनुवाद- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम डाटकाम)
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