by असग़र अली इंजीनियर
गांधी जी की तरह मौलाना का मानना था कि देश की आज़ादी के लिए हिंदू मुस्लिम एकता जरूरी है। इस तरह जब वह कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन में पार्टी के अध्यक्ष बन गए, तब उन्होंने अपने सदारती खिताब को इन शब्दों के साथ समाप्त किया, ''चाहे जन्नत से एक फरिश्ता अल्लाह की तरफ़ से हिंदुस्तान की आज़ादी का तोहफा लेकर आए, मैं उसे तब तक कुबूल नहीं करूंगा, जब तक कि हिंदू मुस्लिम एकता कायम न हो जाए, क्योंकि हिंदुस्तान की आज़ादी का नुक्सान हिंदुस्तान का नुक्सान है जबकि हिंदू मुस्लिम एकता को नुक्सान पूरी मानवता का नुक्सान होगा।'' ...
http://newageislam.com/hindi-section/मौलाना-अबुल-कलाम-आजाद--स्वतंत्रता-और-सांप्रदायिक-सौहार्द-के-लिए-उनका-जोश-और-जज़्बा/d/6654
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