जैसे ही कोई व्यक्ति समाज सुधार की बात करता है, वैसे ही बल्कि उसी लम्हा उस पर ये इल्ज़ाम लग जाता है कि ये व्यक्ति शरीअत में परिवर्तन करना चाहता है। शरीअत खुदाई कानून है और इसमें परिवर्तन का मतलब अल्लाह की नाफरमानी है। इस तर्क से हर सुधारवादी की छवि धूमिल हो जाती है। बहरहाल आज के सुधारवादी ये कह रहे हैं कि इस्लाम के कानून में किसी भी तरह की तब्दीली किये बगैर उन सिद्धान्तों और और नियमों में जो पुराने जमाने के सियासी और सामाजिक आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर बनाये गये थे, इस हद तक तब्दील किये जायें या उन्हें इतना विस्तार दिया जाये कि वो आधुनिक समय की आश्यकता को समायोजित कर सके। --असग़र अली इंजीनियर(उर्दू से अनुवाद-समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम डाट काम)
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