Saturday, March 21, 2020

All the Lines are currently Blurred वर्तमान में सब लकीरें मिट गई हैं



शकील शम्सी
२० मार्च, २०२०
इंसानों ने इंसानों के बीच धर्म, नस्ल, ज़ात, रंग और कौमियत की जितनी लकीरें खींच रखी थीं उनको मिटाने का कोई रास्ता ज़िन्दगी तो नहीं खोज सकी, अलबत्ता मौत की दहशत और बीमारी के खौफ ने भेद भाव की सारी लकीरें मिटा कर सारे इंसानों को एक बार फिर इंसान बना दियाl अब चीन से लेकर अमेरिका तकl जापान से ले कर इरान तक, वेटिकन से ले कर मक्का तक, भारत से ले कर पाकिस्तान तक, कर्बला से ले कर काशी तक, हरिद्वार से ले कर हाजी अली तक, सनम कदों से लेकर गिरिजाघरों तक, मस्जिदों से लेकर मंदिरों तक, आइफ़िल टावर से ले कर क़ुतुब मीनार तक, रूम से ले कर कुम तक और एक महाद्वीप से ले कर दोसरे महाद्वीप तक सबके साथ करोना वायरस बराबर का व्यवहार कर रहा हैl किसी को भी उसकी नस्ल, उसकी ज़ात, उसका रंग, उसकी भाषा और उसकी कौमियत देख कर ना तो यह वायरस निशाना बना रहा है और ना ही किसी को इसलिए बख्श रहा है कि वह बहुत इबादत गुज़ार है, इमानदार है, भक्त है, धर्म कर्म वाले कामों में भाग लेता है, मंदिरों में घंटा बजाता है, मस्जिदों में अज़ान देता है, पंडित है, मौलवी है, राहिब है, रबाब है या ज्ञानी व ध्यानी हैl जो भी थोड़ी बे एहतियाती का प्रदर्शन कर रहा है उसका हाथ यह वायरस फ़ौरन थामे ले रहा हैl इसके खौफ का यह आलम है कि इंसान अपने सगे संबंधियों से डरा हुआ है, आज बिना कैद के मज़हब व मिल्लत इंसान एक दोसरे को छूने व हाथ मिलाने और गले मिलने से डर रहा हैl केवल मज़हबी मामलों पर ही नहीं दुनयावी मामलों पर भी जबर्दस्त असर पड़ा है इस वबा काl इसी की वजह से हांग कांग में महीनों से चल रही जम्हूरियत बहाली की तहरीक ख़त्म हो गईl हमारे देश में भी पिछले तीन महीने से सी ए ए के खिलाफ जो तहरीक चल रही है अब देखना है उस पर इस वबा का प्रभाव पड़ता है या नहींl बहर हाल ऐसा समय तो मानव समाज पर कभी नहीं पड़ा था कि जब बहुत सारी मस्जिदों से दी जाने वाली अज़ान में शिरकत की दावत दिए जाने के बजाए ‘الصلوۃ فی بیوتکم’ अर्थात घरों में नमाज़ अदा करने को कहा जा रहा हैl
बहुत सारी मस्जिदों में जुमे की नमाज़ भी नहीं हो रही हैl कई मस्जिदों के इमामों की तरफ से मैसेज भेजे जा रहे हैं कि मस्जिद में कम से कम संख्या में आएं, आपस में दुरी रखें और एक दोसरे से हाथ ना मिलाएंl इन सब बातों से कुछ मुसलमान खफा भी हैं उनको लगता है कि नमाज़ को किसी हालत में नहीं छोड़ना चाहिए चाहे मौत ही क्यों ना आ जाए, ऐसा बहुत सारे हिन्दू भाई भी सोचते हैं कि चाहे जो हो मंदिरों को बंद करना और भक्तों की आवाजाही पर पाबंदी लगाना धर्म के खिलाफ हैl उनको भी लगता है कि कोरोना वायरस उनके धर्म के खिलाफ एक साज़िश हैl हालांकि हिन्दू हो या मुसलमान, ईसाई हों या सिख सब इस बात से परिचित हैं कि कोरोना वायरस एक ऐसी वबाई मर्ज़ है जो इंसान से इंसान में फैलता है और अगर इंसानों का हुजूम कहीं पर भी जमा होगा तो वहाँ इस वायरस के फैलने के बहुत संभावना हैl अभी तक हमारे देश में इस मर्ज़ से वैसा रंग विकल्प नहीं किया है कि अनगिनत मौतें हो रही हों या जो चीन, इटली और इरान की तरह इस वबा ने यहाँ हज़ारों लोगों को शिकार बनाया होl अभी प्रभावित लोगों की संख्या २०० के आस पास है और मरने वालों की संख्या अभी तक इकाई के अंक में हैl मैं कहना चाहूँगा कि जिन लोगों को मस्जिदें, दरगाहें और खानकाहें बंद होने या उमरा और ज़्यारत पर पाबंदी लगने का गम है वह यह बात ठंडे दिल से सोचें कि अगर यह मर्ज़ अल्लाह ना करे लाखों मुसलमानों में दाखिल कर गया तो मिल्लत कितने बड़े विडंबना का शिकार हो जाए गी? अल्लाह तो हर बंदे के दिल का हाल जानता है, उसको खबर है कि कोई भी मुसलमान जान बुझ कर तो नमाज़ तर्क नहीं कर रहा है और कोई नमाज़ तर्क करने का बहाना भी नहीं तलाश रहा हैl यक़ीनन मस्जिद ए हराम के आस पास सन्नाटा देख कर दिल को तकलीफ होती है, यकीनन मदीना मुनव्वरा, नजफ़, कर्बला, बग़दाद, मस्जिद ए अक्सा और मशहद के जगहों पर छाई हुई वीरानी देख कर हर मुसलमान का दिल दुखता हैl स्पष्ट है किसी ने कभी इस बात की कल्पना भी नहीं की थी कि जिन शहरों में लाखों मुसलमान मौजूद हों वहाँ एक समय ऐसा भी आएगा कि उनकी इबादत गाहें सुनी हो जाएंगीl इधर आज पुरे भारत में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के कौम के नाम ख़िताब को ले कर बहुत अफरा तफरी रही, कई जगहों पर लोगों ने घबराहट में तरकारियाँ वगैरा खरीदना शुरू कर दीं मगर मोदी जी ने कहा घबराहट में खरीददारी मत करें, मगर उन्होंने इतवार के रोज़ सुबह ७:०० बजे से ९:०० बजे तक जनता कर्फ्यू का एलान करके सब को चौंका दिया और लोगों को एहसास हुआ कि यह वबा सख्त मरहले में पहुँच गई हैl
२० मार्च, २०२० सौजन्य से: इंक़लाब, नई दिल्ली

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