Thursday, January 23, 2014

Lucknow Still has Cooks who Claim to Prepare Baquar Khani which does not Rot for Three Months आज भी लखनऊ में हैं तीन महीने तक खराब न होने वाली बाक़र ख़ानी बनाने का दावा करने वाले कारीगर

एस.एम. जाफर
5 जनवरी, 2014
लखनऊ- मीर तक़ी मीर ने दिल्ली को चुना था लेकिन वो इस शहर को छोड़कर लखनऊ में बस गए थे। ज़ाहिर सी बात है कि मीर ने लखनऊ शहर को दिल्ली पर प्राथमिकता दी। लखनऊ दूसरे शहरों की तरह सिर्फ इंसानी आबादी की रिहाइश ही नहीं था बल्कि अपनी खास पहचान के कारण पूरे विश्व में उसकी धूम थी। संस्कृति, साहित्य, वास्तुकला, संगीत, उद्योग और कला बाज़ार और अपने विशिष्ट दस्तरख़ान के कारण ये शहर दूसरे शहरों से अलग था और अलग रहेगा। अवध के नवाबों के ज़माने में जिन चीज़ों को बढ़ावा मिला उनमें खाने के विभिन्न प्रकार भी शामिल हैं। जैसे कोरमा, रूमाली रोटी, कुल्चा, निहारी, लखनवी पुलाव, बिरयानी, कबाब और शीरमाल आदि। अवध के नवाबों से मिलने वाले ईनाम व सम्मान और प्रेरणा ने उस वक्त के बावर्चियों (रसोईया) को इन डिशों के अलावा और भी नई नई खोज और तजुर्बे करने के लिए प्रोत्साहित किया। जैसे कुल्चे में परतदार कुल्चा, सादा कुल्चा और ग़िलाफ वाला कुल्चा। निहारी में गोश्त की निहारी और पाये की निहारी। कबाबों में शामी कबाब, गिलावट के कबाब, टिकिया के कबाब, नर्गिसी कबाब, सीख़ के कबाब और काकोरी कबाब आदि। इसी तरह शीरमाल भी कई प्रकार की होती हैं जैसे बाक़र ख़ानी, ताफ़तान और तबारुखु आदि।
 
 

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