Friday, January 24, 2014

History of Namza in Islam (Part 10): Namaz of a Traveller and That of a Settled Person इस्लाम में नमाज़ का इतिहास- स्थायी निवासी और मुसाफिर की नमाज़ (10)

नास्तिक दुर्रानी, न्यु एज इस्लाम
26 दिसम्बर, 2013
मक्का में नमाज़ दो रिकअत थी, उसमें कोई फ़र्क़ (अंतर) नहीं था कि नमाज़ी शहर में हो यानी स्थायी रहने वाला हो या सफ़र (यात्रा) में हो, लेकिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की यसरब हिजरत (पलायन) के बाद, जब उनके आगमन को एक महीने हो गया था, रबीउस्सानी के महीने की बारह रातें गुज़र जाने के बाद नमाज़ में स्थायी रूप से रहने वाले के लिए दो रिकअत का इज़ाफ़ा कर दिया गया, इसे स्थायी रूप से रहने वाले की नमाज़ या "सलातुल हज़र" नाम दिया गया ताकि दो रिकअत, वाली पिछली नमाज़ जो अब सफ़र के लिए विशेष कर दी गई थी। इससे उसे अलग किया जा सके, इसलिए सफर की नमाज़ का हुक्म हिजरत के पहले साल में दिया गया 1, लेकिन कुछ कथन ऐसी भी मौजूद हैं जिनके मुताबिक इसका हुक्म हिजरत के एक साल बाद किया गया 2।
हदीस और फ़िक़्हा (धर्मशास्त्र) की किताबों में इस दूरी का निर्धारण किया गया है, जिससे अगर इंसान आगे बढ़े जाए तो तो वो मुसाफिर कहलाएगा 3। इसलिए ये उन नमाज़ों में है जिनका हुक्म मदीना
 

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