Wednesday, March 19, 2014

Was Salman Farsi Iraq's Rafdy? क्या हज़रत सलमान फारसी इराक के राफ़्दी थे?






बासिल हेजाज़ी, न्यु एज इस्लाम
18 मार्च, 2014
सूरे माइदा की आयत 69 में आया है:
إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَالَّذِينَ هَادُوا وَالصَّابِئُونَ وَالنَّصَارَىٰ مَنْ آمَنَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ وَعَمِلَ صَالِحًا فَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ
अनुवादः निस्संदेह वो लोग जो ईमान लाए हैं और जो यहूदी हुए हैं और साबई और ईसाई, उनमें से जो कोई भी अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाए और अच्छा कर्म करे तो ऐसे लोगों को न तो कोई डर होगा और न वो शोकाकुल होंगे।
आयत से पता चलता है चूँकि यहूदी और ईसाई अल्लाह और यौमे आखिरत (प्रलय) पर ईमान रखते हैं इसलिए इनमें से जो कोई भी अच्छा काम करेगा उन्हें किसी डर व ग़म का सामना नहीं करना पड़ेगा जिसके लिए उन्हें मुसलमान होने की भी कोई ज़रूरत नहीं, मगर साबेईन का क्या? उन्हें डर क्यों नहीं? क्या वो अहले किताब हैं जो उन्हें डर नहीं? आखिर इसके क्या तर्क हो सकते हैं? क्या साबेईन का सम्बंध फारस था? क्या वो बुत परस्त (मूर्तिपूजक) नहीं थे? इब्ने कसीर ने ऊपरोक्त आयत की व्याख्या में लिखा है कि ये आयत हज़रत सलमान फारसी के दोस्तों पर नाज़िल हुई थी, चूँकि हज़रत सलमान फारसी पैगम्बर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के बहुत क़रीब थे, इसलिए एक दिन हुज़ूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के पास बैठकर उन्हें साबेईन के बारे में बताने लगे कि वो आपके आने से पहले आप पर ईमान (विश्वास) ले आए थे जिस पर पैगम्बर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने कहा कि साबेईन जहन्नम (नरक) जाने वालों में से हैं, ये सुन कर हज़रत सलमान फारसी उनके लिए बहुत दुखी हुए जिस पर अल्लाह ने ये आयत नाज़िल की और बताया कि साबेईन पर कोई खौफ नहीं लेकिन न तो फारस के इतिहास और न ही खोजे गये पुरातात्विक अवशेषों से ये बात किसी तरह से साबित होती है कि साबेईन किसी आसमानी धर्म के अनुयायी थे या वो हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के आने से पहले उन पर ईमान लाए थे। इसलिए लगता है कि उपरोक्त आयत में साबेईन को यहूदी व ईसाई की सूची में जिन पर कोई खौफ नहीं हज़रत सलमान फारसी को राज़ी करने के लिए शामिल कर दिया गया क्योंकि जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने हज़रत सलमान फारसी को ये बताया था कि वो जहन्नम में जाएंगे तो वो उनके लिए बड़े दुखी हुए थे।
 

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