Thursday, March 20, 2014

Terrorist Attack On India's Maulana Usaidul-Haq Qadri In Iraq इराक में मौलाना उसैदुल हक़ क़ादरी पर आतंकवादी हमला और मुस्लिम देशों में सूफी विद्वानों का क़त्ले आम


ग़ुलाम रसूल देहलवी, न्यु एज इस्लाम
07 मार्च, 2014
इस विषय पर चर्चा करने से पहले मैं कट्टरपंथियों के हाथों सूफी विद्वानों की दर्दनाक हत्या की दो शर्मनाक घटनाओं का उल्लेख करना चाहूँगा:
(1) मुफ्ती सरफ़राज़ अहमद नईमी (अलैहि रहमा) पाकिस्तान के सूफी पंथ को मानने वाले धार्मिक विद्वान थे जिन्हें उदार इस्लामी विचारधारा का समर्थन और पाकिस्तान में आतंकवादी गतिविधियों का ज़बरदस्त विरोध करने के लिए जाना जाता थ। 12 जून, 2009 को उन्हें उस समय एक आत्मघाती बम धमाके में शहीद कर दिया गया जब वो पाकिस्तान के शहर लाहौर की एक मस्जिद में जुमा की नमाज़ की इमामत कर रहे थे। उन्होंने तहरीके तालिबान पाकिस्तान की आतंकवादी विचारधारा और उनकी गतिविधियों को गैर इस्लामी करार दिया था, इसके बाद ही उन्हें आत्मघाती हमले का निशाना बनाया गया।  
(2) सूफी पृष्ठभूमि वाले वैश्विक स्तर के प्रखर धार्मिक विद्वान शेख़ रमज़ान अलबूती जो आमतौर पर 'उदारवादी इस्लामी विद्वान' के रूप में जाने जाते थे। उन्होंने व्यापक स्तर पर अपने ज़बरदस्त लेखन और धार्मिक भाषणों के द्वारा इस्लाम धर्म के आधारभूत तत्वों की स्वयंभू सल्फ़ी व्याख्याओं का खुले तौर पर खंडन किया था। सल्फ़ियों की वैचारिक अतिवादिता और आधुनिक दौर में इसके बुरे परिणामों की व्याख्या और सल्फ़ी विचारधारा का खंडन करते हुए उन्होंने अत्यंत महत्वपूर्ण किताब ''As-Salaf was a blessed epoch, not a school of thought'' (अस्सलफ़ एक मुबारक युग था, न कि कोई विचारधारा) लिखी। उन्होंने विभिन्न मुस्लिम देशों में सक्रिय धार्मिक कट्टरपंथियों की अतिवादी और राजनीतिक विचारधारा और हिंसक गतिविधियों की सैद्धांतिक स्तर पर ज़बरदस्त खंडन किया था, जैसा कि उनकी एक और किताब ''अलजिहाद फिल-इस्लाम' (1993) से स्पष्ट है। उन्होंने जीवन भर सूफीवाद और आध्यात्मिकता पर आधारित इस्लामी विश्वासों का समकालीन शैली में प्रचार प्रसार किया। सूफी पृष्ठभूमि वाले इस धार्मिक विद्वान को सल्फ़ी आतंकवादियों ने उस समय आत्मघाती हमले का निशाना बनाया जब वो अपने शागिर्दों को सीरिया के शहर दमिश्क के सेन्ट्रल माज़रा डिस्ट्रिक्ट की मस्जिद ईमान में धार्मिक भाषण दे रहे थे।

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