Thursday, January 22, 2015

But Who should Teach and to Whom? मगर कौन मसझाए और कैसे समझाए?




वसअतुल्लाह खान
13 जनवरी, 2015
आप लाख विशिष्टताएं करते फिरें या दिल में सोचते फिरें या नज़र अंदाज़ करते रहें या बात बदलने की कोशिश करें कि चार्ली हीबडो के ग्यारह पत्रकार और कार्यकर्ताओं की मौत की एक अपमानजनक पृष्ठभूमि है। यह बात कुछ या हजार या लाख या करोड़ मुसलमानों की समझ में तो आ जाएगी लेकिन इस दुनिया में 75 प्रतिशत गैर मुस्लिम भी तो हैं। उनमें से कितनों को पकड़ पकड़ के समझाएगें कि असल बात यह है कि ..
हां डेनमार्क के एक अखबार ने ऐसे कार्टून छापे जो किसी भी मुसलमान के लिए अपमानजनक है। हां चार्ली हीबडो में भी ऐसे अपमानजनक कार्टून छपते रहे हैं। हां एक जर्मन अखबार ने भी ऐसा ही किया। हां पश्चिम में कोई भी माझा साझा दैनिक उठकर कोई न कोई अपमानजनक हरकत कर देता है और आगे भी यह सिलसिला रहेगा।
तो उसका समाधान किया है।? जो भी एसी हरकत करे उसे मार दें? तो क्या आप किसी गैर मुस्लिम से भी पवित्र इस्लामी हस्तियों के उतने ही सम्मान की उम्मीद रखते हैं जितना सम्मान एक मुसलमान करता है? और अगर कोई गैर मुस्लिम यह न करे तो उसे भी वही सजा मिलनी चाहिए जो एक मुर्तिद के लिए है?
यही सही रवैया है तो फिर मैं नबी की सुन्नत कहां रखूं? जिन मूशरिकों ने आप (स.अ.व.) पर मक्का की गलियों में आवाज़ें कसीं वे कैसे ज़िन्दा बच गए? जो महिला आप पर सड़क से गुज़रते हुए नियमित रूप से कूड़ा फेंकतीं थी उसका क्या बना? (आप तो उसकी अयादत को भी जाते रहे। क्यों?) जिन्हों ने आप (स.अ.व.) पर ताइफ़ में पत्थरबाज़ी कर के लहू लुहाण कर दिया और उस तौहीन रेसालत पर तो खुदा भी कहे बिना न रह सका कि कहिए तो उन ज़ालिमों को दो पहाड़ों के बीच पीस दूं।? तो फिर क्या दुआ की आप (स.अ.व.) ने? क्या आप में से कोई है जिन्हें यह घटनाएं घुट्टी में न पिलाई गई हो? किसी कक्षा में न पढ़ाए गए हों किसी जुमा की नमाज से पहले लाखों बार न धराए गए हों? तो क्या सबक लिया सुन्नत नबवी (स.अ.व.) पर मर मिटने वालों ने इन उदाहरणों से?
मगर वह तो नबी थे इस लिए उन का सब्र भी नबी वाला था। हम तो उन के पाँव के धूल के बराबर भी नहीं। हम में इतना सब्र कैसे पैदा हो सकता है? हमारी ग़ैरत कैसे गवारा कर सकती है कि कोई नबी की तौहीन करे और हम बैठे रहें।
अगर इस औचित्य को वैसे ही स्वीकार कर लिया जाए तो फिर तो यह होना चाहिए था कि मक्का में नबी (स.अ.व.) पर आवाज लगाने वालों को अगर आप (स.अ.व.) के सामने नहीं तो आप (स.अ.व.) के वेसाल के बाद ही कोई सहाबी या खलीफा चुन चुन के मार देता। कोई इस गंदगी फेंकने वाली बुढ़िया की कब्र को खोद डालता, कोई लश्कर ताइफ़ की ईंट से ईंट बजा देता भले वह मुसलमान ही क्यों न हो चुके हों। ऐसा क्यों नहीं हुआ? क्या जोश की कमी थी? रसूल अल्लाह (स.अ.व.) की ज़ात से सहाबा और ताबेईन की मुहब्बत से आज के मुसलमान की मुहब्बत कम थी? या फिर उन्हों ने यह सोच कर गुस्सा पी लिया कि कहीं हमसे जाने अनजाने में सुन्नत नबवी(स.अ.व.) का अपमान न हो जाए?
लेकिन यह मुट्ठी भर गुमराह लोग हैं, जो इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं। बहुमत (अक्सरियत) का उनके कार्यों से कोई लेना देना नहीं। हालांकि यह बात बिल्कुल सही है लेकिन यह बात इस दुनिया की गैर मुस्लिम बहुमत (अक्सरियत) से आख़िर हज़म क्यों नहीं होती। और जो आपकी यह व्याख्या स्वीकार कर लेते हैं वह फिर क्यों कहते हैं कि सभी मुसलमान आतंकवादी नहीं हैं लेकिन अक्सर आतंकवादी मुसलमान ही क्यों? और मुसलमानों के बहुमत (अक्सरियत) उन मुट्ठी भर लोगों के सामने इतनी बेबस क्यों है? अपना धर्म विकृत करने वालों के खिलाफ हर संभव प्रतिरोध क्यों नहीं करते? उन्हें इस्लाम से बाहर क्यों नहीं कर देते? (हालांकि वह तो कब का दायरा इस्लाम से खारिज कर चुके हैं)। पेरिस में तो केवल सत्रह लोगों की मौत के विरूद्ध 30 लाख लोग सड़कों पर निकल आए। मुस्लिम देशों में तो सैकड़ों हजार लोग इन मुट्ठी भर आतंकियों का निशाना बन गए। परिवार के परिवार उजड़ गए। क्या कभी उनके खिलाफ किसी मुस्लिम देश के किसी शहर में किसी दिन एक लाख लोग सड़कों पर निकले? उन्हें शरण देने वाले क्या गैर मुस्लिम हैं? उनसे समझौते करने वाले क्या खुद को मुसलमान नहीं कहते? उनकी घोषणा या दबे श्ब्दों में समर्थन करने वाले या दिल में नरम गोशा रखने वाले क्या मुसलमान नहीं कहलाते?
अगर कोई हिंदू, ईसाई या यहूदी आतंक फैलाऐ तो कोई नहीं कहता कि यह धार्मिक आतंकवादी हैं बल्कि यह कहा जाता है कि यह उनकी व्यक्तिगत क्रिया है। लेकिन मुस्लिम नाम सुनते ही घंटीयाँ बज जाती हैं देखों देखों यह मुसलमान है। यह इस्लामी आतंकवादी है।
हां यही हो रहा है। लेकिन यह धारणा क्यों बनी? नाइन इलेवन के बाद से विशेषकर अलकायदा के कारण आतंकवाद इनटरनेशनलाईज़ हो गया, इसलिए यह धारणा बनी। हां हिंदू आतंकवादी भी हैं मगर अब तक कोई हिंदू आतंकवादी पश्चिम छोड़ पाकिस्तान में भी नहीं फटा लेकिन भारत में जरूर हिंदू आतंकवादी पकड़े गए। यहूदियों की व्यक्तिगत आतंकवाद फिलहाल इजरायल और फिलिस्तीन तक सीमित है। अब तक कोई यहूदी आतंकवादी सऊदी अरब में नहीं पकड़ा गया। अमेरिकी ईसाई टोरंटो में नहीं ओकला होमा में बम फाड़ रहा है और स्वीडिश ईसाई सिडनी में नहीं स्टॉकहोम के निकट एक द्वीप में सत्तर लोगों का क़त्ल कर रहा है। किसी हिंदू, यहूदी और ईसाई आतंकवादी ने यह नारा नहीं लगाया कि वह पूरी दुनिया को हिंदू, यहूदी और ईसाई बना के दम लेगा। अगर गैर मुस्लिम दुनिया यह समझ रही है कि यह सब इस्लाम के नाम पर हो रहा है तो इसकी वजह यह है कि एक अज़ बक अश्कबाद के बजाय इस्लामाबाद में फट रहा है, अल्जीरिया बगदाद में फट रहा है। सऊदी न्यूयॉर्क में विमान टकरा रहा है, मोरक्को मैड्रिड में ट्रेन उड़ा रहा है, अफगानी सिरिया में लड़ रहा है। पाकिस्तानी मुंबई में फायरिंग कर रहे है, ब्रेड फोर्ड का नौजवान लंदन ट्यूब स्टेशन में विस्फोट कर रहा है और दाईश की तरफ से इराक में यज़ीदीयों को भी बंधक बना रहा है।
जिस ज़माने में फिलिस्तीनी विमान अपहरण कर रहे थे, किसी ने कहा कि यह मुस्लिम आतंकवाद है।
आज भी फिलिस्तीनी इस्राइल की नज़र में मुसलमान नहीं फिलिस्तीनी आतंकवादी हैं। जब अल्जीरिया फ्रांस से लड़ रहे थे तो उन्हें मुसलमान आतंकवादी क्यों नहीं कहा गया, अल्जीरिया हुर्रियत पसंद क्यों कहते थे। कश्मीर में लड़ने वाले भारत के पास भले आतंकवादी हों लेकिन बाकी दुनिया हुर्रियत कांफ्रेंस या सैयद अली गिलानी को इस्लामी आतंकवादी कहती है? पेरिस में मुस्लिम आतंकवादी अहमद को लीबाई ने मुस्लिम पुलिस अधिकारी अहमद मीराबत को फुटपाथ पर मारा। कौशर मार्केट के एक मुस्लिम कर्मचारी लेसान बीथली ने यहूदी ग्राहकों को कोल्ड स्टोरेज में बंद करके बचाया। पेरिस के प्रदर्शन में दो मुसलमान हीरोज़  की तस्वीरें भी बीसियों प्रदर्शनकारियों के हाथों में थी। क्यों थीं?
मुसलमानों में उग्रवाद इसलिए बढ़ रही है कि पश्चिम ने उनके साथ गंभीर ऐतिहासिक और आर्थिक अन्याय की है।
अगर यह दलील है तो फिर तो सभी काले अफ्रीका को बंदूकें लेकर पश्चिम पर चढ़ाई कर देना चाहिए। उनसे अधिक राजनीतिक, आर्थिक और भौगोलिक व ऐतिहासिक अन्याय तो कभी किसी के साथ नहीं हुई है। मगर सिवाय बोको हराम और सोमालिया के अलशहाब के सब ने बेगैरती का कैप्सूल खा रखा है। पूरे लातीनी अमेरिका संयुक्त राज्य अमेरिका को धमाकों से हिला देना चाहिए क्योंकि वाशिंगटन से अधिक किसने लातीनी अमेरिका का लहू चूसा है। सैकड़ों बोस्नियाई मुसलमानों को सीने पर बम बांध के रूस में उधम मचा देना चाहिए। क्योंकि सरब हत्यारों का सबसे बड़ा पशतीबान यह मरदूद रूस ही तो रहा है और सब चैचनियाई मुसलमानों को भी यही कहना चाहिए।
और जब जब मौक़ा आते हैं खुद को आतंकवाद से अलग दिखाने के तो उन्हें असंवेदनशील या बेदरदी में नष्ट कर दिया जाता है। जैसे पेरिस में जॉर्डन के शाह अब्दुल्ला, फ़िलिस्तीन, माली, गैबून, नाइजीरिया के राष्ट्रपति और अमीर क़तर के भाई की वैश्विक एकजुटता प्रदर्शनों में उपस्थिति इतनी महत्वपूर्ण नहीं थी जितनी कि अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी, इराक़ी प्रधानमंत्री हैदर अल अबादी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की थी। मगर कौन समझाए, किसे समझाए और कैसे।........
स्रोतः रोज़नामा एक्सप्रेस, पाकिस्तान

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