Wednesday, October 9, 2013

The Silent Majority Is Dead खामोश बहुसंख्यक मुर्दा हैं


याक़ूब ख़ान बंगश
23 सितंबर, 2013
पाकिस्तान में जब भी कोई आतंकवादी हमला होता है तो हर तरफ से नियमित निंदा का दौर शुरू हो जाता है। इसके बाद लोग हमेशा की तरह अपने व्यवसाय में लग जाते हैं, जब तक कि इसी तरह का एक और हमला होता है और इसके बाद फिर वही फिल्म दोहराई जाती है। ऐसा लगता है कि सब कुछ होता है, फिर भी कुछ नहीं होता। लोग इन हमलों की निंदा करते हैं, लेकिन फिर भी आतंकवादी बार बार हमारे बीच पाये जाते हैं। लोग मरने और घायल होने वालों को लेकर दुःखी होते हैं लेकिन इसके बाद जल्द ही वो इन सब बातों को भूल जाते हैं। लोगों को जब हमलों के बारे में पता चलता है तो वो उदास होते हैं, लेकिन बिरयानी के अगले दौर में हम ये सब भूल जाते हैं।

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