Thursday, October 24, 2013

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ज़फ़र आग़ा
21 अक्टूबर, 2013
भारतीय इतिहास की जानकारी रखने वाले लोग मीर जाफ़र और मीर सादिक़ के नाम से परिचित होंगे। जाफ़र और सादिक़ इसलिए याद नहीं किए जाते कि उन्होंने कोई बड़ा ऐतिहासिक कारनामा अंजाम दिया था। इन दोनों का नाम इतिहास में इसलिए प्रसिद्ध है कि उन्होंने अंग्रेज़ों से मिलकर अपने आकाओं की पीठ में छुरा घोंपा था। मीर जाफ़र ने बंगाल के शासक नवाब सिराजुद्दौला के खिलाफ अंग्रेजों से मिलकर अपने नवाब की तबाही का सामान किया था, जिसके बाद बंगाल में अंग्रेजों के शासन की स्थापना हो गई थी।
इसी तरह दक्कन में मीर सादिक़ ने टीपू सुल्तान को धोखा देकर अपने हाकिम को युद्ध के मैदान में अंग्रेजों के हाथों क़त्ल होने के लिए छोड़ दिया था। इसलिए मीर जाफ़र और मीर सादिक़ भारतीय इतिहास में इतने बदनाम हुए कि आज दोनों धोखे के प्रतीक के रूप याद किए जाते हैं। क्योंकि इन दोनों के धोखे से न सिर्फ भारत पर अंग्रेजों का क़ब्ज़ा हो गया था बल्कि भारत से मुस्लिम शासन का अंत हो गया था। यही कारण है कि इन दोनों के बारे में अल्लामा इक़बाल का ये शेर बहुत प्रसिद्ध हुआ:

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