Wednesday, July 31, 2019

Jihad does Not mean war or Fighting कुरआन के उर्दू अनुवादों में किताल और जिहाद को एक ही अर्थ में बयान किया गया है जो गुमराह करने वाले हैं




सुहैल अरशद, न्यू एज इस्लाम
इस्लाम के शुरू के दिनों में पैगम्बरे इस्लाम और उनके अनुयायियों को मक्का के मुशरिकीन और यहूदियों से सख्त प्रतिरोध का सामना थाl कुफ्फार व मुशरिकीन के हाथों उन्हें काफी कष्ट और मुसीबतें उठानी पड़ींl इसके बावजूद वह ईमान पर कायम रहे और सभी तकलीफों को सब्र व रज़ा से बर्दाश्त कियाl फिर भी जब मुशरिकीन और यहूदियों की रेशा दवानियां हद से अधिक बढ़ गईं और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जान को खतरा हो गया तो उन्होंने मक्का से मदीना को हिजरत का फैसला कियाl और हज़रात मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने जां निसारों के साथ मदीना स्थानांतरित हो गएl मगर यहाँ भी उन्हें यहूदियों और मुशरिकीन की साजिशों का सामना करना पड़ाl यहाँ जब मुस्लिमों की संख्या अधिक हो गई और मुशरिकीन जब फैसला कुन जंग पर आमादा हो गए तो मुसलमानों ने जंग भी की और उन जंगों में उन्हें अल्लाह की मदद से फतह भी हासिल हुईl कुरआन में इन जंगों के संदर्भ में दर्जनों आयतें नाज़िल हुईं जिनमें मुसलमानों को जंग के दिनों में अपने अस्तित्व और अपनी सुरक्षा के लिए जंग की हिदायत की गईl इसके साथ ही मुसलमानों को कई मौकों पर सुलह की भी तलकीन की गई और मुसलमानों ने अपने दिल पर जबर कर के मुशरिकीने मक्का से सुलह भी कीl मुसलमान हर मौके पर अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते थे कि जंग ना हो और शांतिपूर्ण तरीके से हर मामला तय हो जाएl इसके लिए उन्होंने हर रणनीति विकल्प की और सब्र कियाl हिजरत से पहले पैगम्बरे इस्लाम ने ताएफ में दीन की तबलीग के लिए पत्थर भी खाए और गालियाँ भी सुनीं और अल्लाह की रज़ा के लिए सब्र कियाl
कुरआन में मुसलमानों को दीन के प्रचार और इसके अस्तित्व के लिए मेहनत करने और कुर्बानी पेश करने की तलकीन की है और इसके लिए बड़े बदले की बशारत दी हैl मुसलमानों को दीन के प्रचार प्रसार और तौहीद के संदेश को जनता तक पहुंचाने के लिए हर तरह से मेहनत और संघर्ष करने की हिदायत दी हैl कुरआन मुसलमानों को दीन का प्रचार प्रसार शांतिपूर्ण ढंग से हिकमत और सब्र के साथ करने की तलकीन की हैl और इसके लिए जान और माल दोनों की कुर्बानी पेश करने की हिदायत दी हैl कुरआन में इस मेहनत और संघर्ष के लिए दो इस्तेलाह प्रयोग किये हैl एक है किताल और दोसरी जोह्दl किताल से मुराद जंग जिसमें मुसलमान या तो दुश्मनों को क़त्ल करें या फिर क़त्ल हों और यह आयतें अधिकतर हुजुर पाक की ज़िन्दगी में हिजरत के बाद नाज़िल हुईं जब मुसलमानों के सामने अस्तित्व का मसला था और जब मुशरिकीन ए मक्का मुसलमानों का सफाया करने के डॉ पे थेl दोसरी इस्तिलाह जोह्द या जिहाद की है जो मुसलमानों के लिए हर ज़माने में अमल के काबिल है और इसका अर्थ है दीन के प्रचार प्रसार के लिए संघर्ष करनाl दीन की राह में तकलीफ उठाना, माल और दौलत की कुर्बानी पेश करना, और शांतिपूर्ण तरीके से दीन के प्रचार प्रसार का काम करना यह सब जिहाद या जोह्द के अन्दर आते हैंl कुरआन में यह दोनों इस्तिलाहात मौके की मुनासिबत से प्रयोग हुए हैं मगर बदकिस्मती से दोनों इस्तिलाहात का उर्दू अनुवाद अधिकतर आयतों में एक ही अर्थ में अर्थात जंग के अर्थ में प्रयोग किया गया हैl जिससे आम मुसलमानों बल्कि अतिवादियों के एक वर्ग में भी यह तास्सुर आम हो गया कि जिहाद या जोह्द क़िताल का समानार्थक है जहां जहां भी जिहाद का उल्लेख आया है वहाँ मुसलमानों को मुशरिकीन और गैर मुस्लिमों से जंग करने और उन्हें क़त्ल करने की हिदायत की गई हैl निम्न में दोनों इस्तिलाहात की मिसालें पेश की जा रही हैं और इनमें अनुवाद की वजह से मफहूम में परिवर्तन के नमूने पेश हैंl
सबसे पहले शब्द क़िताल वाली आयतें पेश हैं जो जंग के ज़माने में उतरी हैं:
و قاتلو ا فی سبیل اللہ (البقرہ: 244
“और लड़ो अल्लाह की राह मेंl”
यह आयत जंग के मैदान में उतरी जब मुशरिकीने मक्का और मुसलमानों में लड़ाई हो रही थी और मुसलमानों को उनसे बहादुरी से लड़ने की तलकीन की गईl
فلما کتب علیہم القتال  تولوا الاّقلیلاً منہم  (البقرہ:246
फिर जब उनको हुक्म हुआ लड़ाई का तो वह सब फिर गए मगर थोड़े से उनमेंl
قاتلوا فی سبیل اللہ (آل عمران: 167
अल्लाह की राह में जंग करोl
یقاتلوں فی سبیل اللہ  (النساء: 76
लड़ते रहो अल्लाह की राह में
فقاتل فی سبیل اللہ (النساء: 84
सो तू लड़ अल्लाह की राह में
इस तरह की दर्जनों आयतें हैं जो जंग के जमाने में मुसलमानों को लड़ाई की तरगीब देती हैंl और इन आयतों में जंग के लिए किताल और उससे मुशतक़ शब्द का प्रयोग हुआ हैl मगर कुरआन में दर्जनों आयतों में शब्द जोह्द और इससे मुशतक़ शब्द जैसे जाहिदु, मुजाहिदून, मुजाहिदीन आदि का प्रयोग हुआ हैl कुरआन में केवल एक आयत में शब्द जिहाद का प्रयोग हुआ हैl इन सभी आयतों में दीन की इशाअत और हिफाज़त के लिए संघर्ष करने, कुर्बानी पेश करने, माल और जान की कुर्बानी देने और तकलीफ पर सब्र करने की तलकीन की गई हैl इन आयतों से लाज़मी तौर पर जंग का मफहूम नहीं निकलता हैl हाँ कभी कभी दीन की राह में निकलने वालों को hostility का सामना करना पड़ सकता है और उन्हें अपने बचाव में हथियार उठाना पड़ सकता हैl मगर जिहाद का अर्थ केवल जंग नहीं हैl यही अंतर क़िताल और जिहाद के मफहूम में हैl मगर कुरआन के उर्दू अनुवादों में जोह्द या जिहाद का अर्थ हर जगह लड़ाई या जंग किया गया हैl कुछ मिसालें पेश हैं:
बेशक जो लोग ईमान लाए और हिजरत की और लड़े (जाह्दु) अल्लाह की राह में (अल बकरा: २१८)
इस आयत में शब्द जाह्दु का अनुवाद ‘लड़े’ अर्थात जंग की, किया गया जबकि इस आयत का मफहूम यह है कि जो लोग ईमान लाए और मुसलमान हुने के बाद जो भी तकलीफें उन्हें दीन की राह में उठानी पड़ीं वह उन्होंने उठाईl उन्होंने तकलीफें सहीं, हिजरत की और हिजरत की तकलीफें बर्दाश्त कीं और इस दौरान अगर उन्हें लड़ना पड़ा तो अपनी बका के लिए और दीन की रक्षा के लिए जंग भी कीl मगर इस आयत में जोह्द का अनुवाद लड़ाई कर देने से मफहूम यह हो गया कि जो भी मुसलमान हुआ उस पर हर हालत में जंग में व्यस्त रहना फर्ज़ हो गयाl एक और आयत है:
बराबर नहीं बैठ रहने वाले मुसलमान जिनको कोई उज्र नहीं हौर वह मुसलमान जो लड़ने वाले (मुजाहिदून) हैं अल्लाह की राह में अपने माल से और जान से (अल निसा: ९५)
इस आयत में मुजाहिदून उनको कहा गया है जो अल्लाह की राह में संघर्ष करते हैं माल से और जान सेl इसलिए, दीन की इशाअत में माल खर्च करने वाला भी मुजाहिद है अर्थात संघर्ष करने वाला हैl वह व्यक्ति भी जो अल्लाह की राह में या दीन की इशाअत के लिए घर से निकला हो वह भी मुजाहिद हैl इस आयत से लाज़मी तौर पर जंग करने वाला नहीं है मगर अनुवाद से यही मफहूम मिलता हैl
जो लोग ईमान लाए और घर छोड़ा (युहाजिरू) और लड़े (जाह्दु) अपने माल और जान से अल्लाह की राह में और जिन लोगों ने जगह दी और मदद की वह एक दोसरे के रफीक हैंl (अल अनफ़ाल: १२)
इस आयत में भी उन लोगों का उल्लेख है जो ईमान लाने के बाद काफिरों और मुशरिकीन के अत्याचार के शिकार हुए और हिजरत करने पर मजबूर हुए और जिन लोगों ने उनकी मदद की और उन्हें पनाह दीl यहाँ जंग की पृष्ठभूमि नहीं हैl यह उन लोगों से संबंधित है जो मक्का से हिजरत करके मदीना आए थे और मदीना वालों ने उनकी मदद की और उन्हें पनाह दीl मगर शब्द जाह्दु का अनुवाद सिदेह सीधे “लड़े” कर दिया गयाl इससे यह मफहूम निकलता है कि जो मुसलमान हो जाए वह हर समय जंग की हालत में रहेl
“और नाज़िल होती है कोई सुरत कि ईमान लाओ अल्लाह पर और लड़ाई करो (जाह्दु) उसके रसूल के साथ हो करl (अल तौबा: ८६)
यहाँ भी जाह्दु का अनुदाद लड़ाई करो कर दिया गया हैl जबकि आयत का मफहूम है कि अल्लाह पर ईमान लाओ और इसके बाद उसके रसूल के साथ दीन के लिए जो भी संघर्ष करनी पड़े और सब्र से काम लेना पड़े और तकलीफ उठानी पड़े वह उठाएl हाँ, अगर आवश्यकता जंग की पड़े तो जंग भी करे, मगर यहाँ जाह्दु का अर्थ केवल लड़ाई या जंग नहीं हैl
एक आयत में जिहाद ए कबीर का उल्लेख हैl
“और अगर हम चाहते तो उठाते हर बस्ती में एक डराने वाला, सो तू कहा मत मां उन मुनकिरों का और मुकाबला कर उनका बड़े जिहाद सेl (अल फुरकान: ५२)
मौलाना फतह मोहम्मद जालंधरी इस आयत का अनुवाद इस प्रकार करते हैं:
“और तुम काफिरों का कहा ना मानों और उनसे इस कुरआन के हुक्म के अनुसार बड़े शद्दो मद से लड़ोl”
अब्दुल्लाह यूसुफ अली इस आयत का अंग्रेजी का अनुवाद इन शब्दों में करते हैं:
Therefore listen no to the unbelievers, but strive against them with utmost strenuousness with the (Quran).
मौलाना हबीब शाकिर इन शब्दों में अनुवाद करते हैं:
So do not follow the unbelievers, and strive against them a might striving with it.
मोहम्मद पीकथाल इस प्रकार अनुवाद करते हैं:
So obey not the disbelievers, but strive against them herewith with a great endeavor.
अनुवादक ने शब्द जिहाद ए कबीर की व्याख्या नहीं पेश की बल्कि शाब्दिक अनुवाद कर दियाl इस आयत का मफहूम यह हो सकता है कि कुफ्फार व मुनकिरिन के अकीदों को कुरआन की मदद से रद्द करो उन्हें अपने बातिल अकीदों को छोड़ने के लिए कुरआन को दलील की हैसियत से पेश करो और उन्हें तौहीद की तरफ दावत दो इसके लिए तुम्हें जो भी तकलीफें उठानी पड़ें वह उठाने के लिए तैयार रहोl अंग्रेजी के अनुवादकों ने जोह्द का अनुवाद जिहाद नहीं किया बल्कि इसके लिए जद्दो जोह्द अनुवाद किया लड़ाई या जंग नहीं किया इस आयत का अनुवाद करते समय उर्दू के अनुवादकों ने इस अम्र को दिमाग में नहीं रखा कि यह आयत मक्की है जब मुसलमान जंग की ताकत नहीं रखते थेl इसलिए फतह मोहम्मद जालंधरी के अनुसार “शद्दो मद से लड़ो” गैर मंतिकी और स्वीकार योग्य नहीं हैl “जिहाद ए कबीर” कुरआन की इस्तिलाह है जिसका मफहूम है अपने नफस के खिलाफ जिहाद करना दीन की राह में ज़ुल्म सहना पड़े और मुसलमान सब्र से इन तकलीफों को अल्लाह की रज़ा के लिए बर्दाश्त करे तो वह जिहाद ए कबीर हैl अल्लाह कहता है कुरआन के जरिये जिहाद ए कबीर करो अर्थात दीन को फैलाने के लिए कुरआन को अपना हथियार बनाओ और दीन की इशाअत के लिए सब्र व तहम्मुल के साथ जद्दो जोह्द करोl
एक और आयत से शब्द जोह्द का मफहूम अधिक स्पष्ट हो जाता हैl
और हमने ताकीद कर दी उनको अपने मां बाप से भलाई करने की और अगर वह ज़ोर करें (जाह्दाक) कि तू शरीक करे मेरा जिसकी तुझको खबर नहीं तो उनका कहना मत मानl” (अल अनकबूत: ८)
इस आयत में मुसलमानों से कहा गया है कि अपने मां बाप के साथ अच्छा व्यवहार करो चाहे वह मुशरिक या काफिर हों मगर जब वह तुम्हें भी शिर्क और कुफ्र की तरगीब दें और या इसके लिए जबर करें तो उनका कहना मत मानोl यहाँ जोह्द का अर्थ तरगीब देना या उकसाना हैl लड़ाई करना नहीं हैl
कुरआन से और भी मिसालें दी जा सकती हैं इन आयतों में जोह्द या जिहाद को क़िताल का समानार्थक करार दिया गया हैl और इन्हीं अनुवादों के कारण मुसलमानों के एक बड़े वर्ग में जिहाद की गलत अवधारणा आम हो गई हैl जिहाद का अर्थ गैर मुस्लिमों से केवल जंग करना नहीं है बल्कि दीन की इशाअत के लिए सब्र करना, तकलीफ उठाना, पत्थर खा कर दुआ देना और अपने नफ्स को काबू में रखना हैl जिहाद ए कबीर की इस्तिलाह मक्की सुरह में प्रयोग की गई है जिसका मफहूम है प्रतिकूल स्थिति में सब्र व तहम्मुल से दीन के लिए काम करनाl मगर आज तक किसी मुफस्सिर या मुतर्जिम ने जिहाद ए कबीर की वजाहत नहीं की बल्कि इसका शाब्दिक अर्थ अनुवाद करने पर ही संतोष कियाl बल्कि इसका अनुवाद बड़ी जंग से किया जो मुसलमानों के लिए मक्की ज़िन्दगी में संभव ही नहीं थाl

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